Tuesday, December 6, 2016

प्रेम की आँख और ऊर्जा कैसे नापे

वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तुम किसी की तरफ बहुत प्रेम से देखते हो तो तुम्हारे भीतर से एक ऊर्जा उसकी तरफ बहती है ! अब इस ऊर्जा को नापने के भी उपाय हैं ! तुम्हारी तरफ से एक ऊर्जा, एक विशिष्ट ऊष्मा, उसकी तरफ प्रवाहित होती है ठीक वैसे ही जैसे विद्युत का प्रवाह होता है ! ठीक वैसे ही विद्युतधारा तुम्हारी तरफ से उसकी तरफ बहने लगती है !

इसलिए अगर तुम्हें कोई प्रेम से देखे तो वह अपनी प्रेम की आंख को छिपा नहीं सकता, तुम पहचान ही लोगे ! तुम्हें जब कोई घृणा से देखता है, तब भी छिपा नहीं सकता, क्योंकि घृणा के क्षण में भी एक विध्वंसात्मक ऊर्जा छुरी की तरह तुम्हारी तरफ आती है, चुभ जाती है !

प्रेम तुम्हें खिला जाता है, घृणा तुम्हें कुछ मार जाती है ! घृणा में एक जहर है, तो प्रेम में एक अमृत है ! रूस में एक महिला है, उस पर बड़े वैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं ! वह सिर्फ किसी वस्तु पर ध्यान करके उसे चला देती है ! टेबल के ऊपर वह दस फीट की दूरी पर खड़ी है और एक बर्तन रखा है ! वह एक पांच मिनट तक उस पर ध्यान करती रहेगी, उसकी आंखें उस पर एकजुट जम जाएंगी और बर्तन कंपने लगेगा ! और वह अगर चाहेगी कि बाएं चलो, तो बर्तन बाएं सरकने लगेगा, दाएं चलो, तो बर्तन दाएं सरकने लगेगा !

इस पर बहुत अध्ययन हुआ है कि मामला क्या है ! लेकिन एक और आश्चर्य की घटना पता चली कि अगर वह पांच मिनट यह प्रयोग करे तो उसका आधा किलो वजन कम हो जाता है ! तो ऊर्जा निश्चित ही उससे प्रवाहित हुई ! उसने ऊर्जा खोई ! पांच मिनट के प्रयोग में उसने काफी जोर से ऊर्जा को फेंका ! उसी ऊर्जा के धक्के में बर्तन हटने लगा, सरकने लगा !

हम एक दूसरे में बह रहे हैं ! हम जानें, या न जानें !

तुमने यह भी देखा होगा कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनके पास तुम्हें बहाव मालूम होगा,  जैसे तुम किसी नदी की धारा में पड़ गए, जो बह रही है ! उनके साथ तुम रहोगे तो ताजगी मालूम होगी ! जीवंतता महसूस होगी ! उनके साथ तुम हो तो एक प्रवाह है, गति मालूम होगी ! फिर कुछ ऐसे लोग हैं जो डबरों की तरह हैं, उनके पास तुम रहोगे तो ऐसा लगेगा, तुम भी कुंद हुए, बंद हुए, कहीं बहाव नहीं मालूम होता, सड़ाध सी मालूम होती है, सब रुका रुका, द्वार दरवाजे बंद, नई हवा नहीं, नई रोशनी नहीं !

जिन व्यक्तियों के पास प्रवाह मालूम होता है, जिनके पास तुम्हारे जीवन में भी स्फ़ुरणा होती है, तुम्हारे भीतर भी कुछ तरंगित होने लगता है, कुछ आनंद की अनुभूति होने लगती है, *तो उसका केवल इतना ही अर्थ है कि वे लोग तुम्हारे भीतर अपने प्राणों को डालते हैं !* वे तुम्हें कुछ देने को तत्पर हैं, कंजूस नहीं हैं, कृपण नहीं हैं ! और जो तुम्हारे भीतर कुछ डालता है वह तुम्हें भी तत्पर करता है कि तुम भी दो ! तुम्हारे ह्रदय में भी प्रतिध्वनि उठती है, संवेदना उठता है !

💖 ओशो 💖

"अष्टावक्र महागीता"

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