Monday, December 5, 2016

तुम कहते हो. ‘मैं निराशा में डूबा जा रहा हूं। ‘


तुम डूबना नहीं चाहते। तुम चाहते हो कि मैं कुछ कागज की नावें तुम्हारे लिए तैरा दूं। ऐसा पाप मैं न करूंगा। तुम गलत जगह आ गए। तुम जाओ किन्हीं पुराने ढब के साधु —संन्यासियों के पास, जो तुम्हें आशीर्वाद दें। वे कहें घबड़ाओ मत। यह लो ताबीज। लाटरी पक्का है मिलना। एक दफा और दाव लगा दो।

‘मेरे पास तो अगर लाटरी तुम्हें मिल भी रही हो, तो ऐसा आशीर्वाद दूंगा कि कभी न मिले। क्योंकि व्यर्थ के जाल में तुम उलझ जाओगे। तुम और कष्ट में पड़ जाओगे। निराशा आ रही है, अंगीकार कर लो। हृदय खुला छोड़ दो। दरवाजे बंद मत करो। स्वागत करो, बंदनवार बांधो। कहो कि आओ, विराजो!

आशा के साथ बहुत दिन रह लिए, कुछ पाया नहीं। अब निराशा से भी दोस्ती करके देखो। कोन जाने, जो आशा से नहीं हुआ, वह निराशा से हो जाए! और मैं तुमसे कहता हूं : होता है। जो आशा से नहीं होता, वह निराशा से होता है। जहां आशा हार जाती है, वहा निराशा जीत जाती है।

और क्या है जीत निराशा की? अगर तुम परिपूर्ण मन से निराशा को स्वीकार कर लो, उसका मतलब है. अब और आशा नहीं करोगे, तो उसी क्षण निराशा मर गयी। निराशा के प्राण आशा में हैं।

   एस धम्‍मों सनंतनो–(भाग–11) प्रवचन–108

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