Monday, December 5, 2016

तुम दुख के कारण नहीं देखते!

दुख के कारण सदा तुम्हारे भीतर हैं। दुख बाहर से नहीं आता। और नर्क पाताल में नहीं है; नर्क तुम्हारे ही अचेतन मन में है -- वही है पाताल। और स्वर्ग कहीं आकाश में नहीं है। तुम अपने अचेतन मन को साफ कर लो कूड़े-करकट से, वहीं स्वर्ग निर्मित हो जाता है।

स्वर्ग और नर्क तुम्हारी ही भाव-दशाएँ हैं, और तुम ही निर्माता हो, तुम ही मालिक हो!

तो दुख को जो देखेगा, उसके हाथ में उसके हाथ में दुख को खोलने की कुंजी आ जाती है। और मजे की बात है कि दुख को जो देखेगा, सामना करेगा, वह दुख का अनुगृहीत होगा। क्योंकि हर दुख एक चुनौती भी है, और हर दुख तुम्हें निखारने का एक उपाय भी है।

और हर दुख ऐसे है, जैसे आग! और तुम ऐसे हो, जैसे आग में गुजरे सोना! आग से गुजरकर ही सोना कुंदन बनता है!

दुखों से भागो मत। दुखों को जीयो। दुखों से होशपूर्वक गुजरो। और तुम पाओगे, हर दुख तुम्हें मजबूत कर गया। हर दुख तुम्हारी जड़ों को बड़ा कर गया। हर दुख तुम्हें नया प्राण दे गया। हर दुख तुम्हें फौलाद बना गया।
ओशो

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