Friday, December 30, 2016

प्रश्न: मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ

Osho: तो  पहले  संन्यास  ले  लो . और  तुम्हे  आत्महत्या  करने  की  ज़रुरत  नहीं  पड़ेगी , क्योंकि  संन्यास   लेने  से  बढ़  कर  कोई  आत्महत्या  नही  है . और  किसी  को  आत्महत्या  क्यों  करनी  चाहिए ? मौत  तो  खुद  बखुद  आ  रही  है —तुम  इतनी  जल्दबाजी  में  क्यों  हो ? मौत  आएगी , वो  हमेशा  आती  है . तुम्हारे  ना  चाहते  हुए  भी   वो  आती  है . तुम्हे  उसे  जाकर  मिलने  की  ज़रुरत  नहीं  है , वो  अपने  आप  आ  जाती  है .पर  तुम  अपने  जीवन  को  बुरी  तरह  से  miss करोगे .  तुम  क्रोध , या  चिंता  की  वजह  से  suicide करना  चाहते  हो . मैं  तुम्हे   real suicide सिखाऊंगा . एक  सन्यासी  बन  जाओ .

और  ordinary suicide करने  से  कुछ  ख़ास  नहीं  होने  वाला  है . , आप  तुरंत  ही  किसी  और  कोख  में  कहीं  और  पैदा  हो  जाओगे . कुछ  बेवकूफ  लोग  कहीं  प्यार  कर  रहे  होंगे , याद  रखो ..तुम  फिर  फंस  जाओगे .. तुम  इतनी  आसानी  से  नहीं  निकल  सकते —बौहुत   सारे  बेवकूफ  हैं . इस शरीर से  निकलने  से  पहले  तुम  किसी   और  जाल  में  फंस  जाओगे . और  एक  बार  फिर  तुम्हे  school., college , university जाना  पड़ेगा – जरा  उसके  बारे  में  सोचो . उन  सभी  कष्ट  भरे  अनुभवों  के  बारे  में  सोचो — वो  तुम्हे  sucide करने  से  रोकेगा .

तुम  जानते  हो , Indians इतनी  आसानी  से  suicide नहीं  करते , क्योंकि  वो  जानते  हैं  कि  वो  फिर  पैदा  हो  जायेंगे , West में  suicide और  suicidal ideas exist करते  हैं ; बहुत  लोग  suicide करते  हैं , और  psychoanalyst कहते  हैं  कि  बहुत  कम  लोग  होते  हैं  जो  ऐसा  करने  का  नहीं  सोचते  हैं .  दरअसल  एक  आदमी  ने  investigate कर  के  कुछ  data इकठ्ठा  किया  था , और  उसका  कहना  है  कि – हर  एक  व्यक्ति  अपने  जीवन  में  कम  से  कम 4 बार  suicide करने  को  सोचता  है . पर  ये  West की  बात  है , East में  , चूँकि  लोग  पुनर्जन्म  के  बारे  में  जानते  हैं  इसलिए  कोई  suicide नहीं  करना  चाहता  है – फायदा  क्या  है ? तुम  एक  दरवाज़े  से  निकलते  हो  और  किसी  और  दरवाजे  से  फिर  अन्दर  आ  जाते  हो .  तुम  इतनी  आसानी  से  नहीं  जा  सकते .

मैं  तुम्हे  असली  आत्महत्या  करना  सिखाऊंगा , तुम  हमेशा  के  लिए  जा  सकते  हो . इसी  का  मतलब  है  बुद्ध  बनना – हमेशा  के  लिए  चले  जाना .

तुम  suicide क्यों  करना  चाहते  हो ? शायद  तुम  जैसा  चाहते  थे  life वैसी  नहीं  चल  रही  है ? पर  तुम  ज़िन्दगी  पर  अपना  तरीका , अपनी  इच्छा  थोपने  वाले  होते  कौन  हो ? हो  सकता  है  तुम्हारी  इच्छाएं  पूरी  ना हुई  हों ?  तो  खुद  को  क्यों  ख़तम  करते  हो  अपनी  इच्छाओं  को  ख़तम  करो .हो  सकता  है  तुम्हारी  expectations पूरी  ना  हुई  हों , और  तुम  frustrated feel कर  रहे  हो . जब  इंसान  frustration में  होता  है  तो  वो  destroy करना  चाहता  है . और  तब केवल  दो संभावनाएं  होती  हैं —या  तो  किसी  और  को  मारो  या  खुद  को . किसी  और  को  मारना  खतरनाक  है  , इसलिए  लोग  खुद  को  मारने का  सोचने  लगते  हैं . लेकिन  ये  भी  तो  एक  murder है !!  तो  क्यों  ना  ज़िन्दगी को  ख़तम  करने  की  बजाये  उसे  बदल  दें !!!

Saturday, December 24, 2016

मृगतृष्णा की दौड़: पर्दोवाली स्त्री की तलाश

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अमेरिका के मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अब जब तक अमेरिका में फिल्म-टेलीविजन हैं, तब तक कोई पुरुष किसी स्त्री से तृप्त नहीं होगा और कोई स्त्री किसी पुरुष से तृप्त नहीं होगी। क्यों? क्योंकि टेलीविजन ने और सिनेमा के पर्दे ने स्त्रियों और पुरुषों की ऐसी प्रतिमाएं लोगों को दिखा दीं, जैसी प्रतिमाएं यथार्थ में कहीं भी मिल नहीं सकतीं; झूठी हैं, बनावटी हैं। फिर यथार्थ में जो पुरुष और स्त्री मिलेंगे, वे बहुत फीके-फीके मालूम पड़ते हैं। कहां तस्वीर फिल्म के पर्दे पर, कहां अभिनेत्री फिल्म के पर्दे पर और कहां पत्नी घर की! घर की पत्नी एकदम फीकी-फीकी, एकदम व्यर्थ-व्यर्थ, जिसमें नमक बिलकुल नहीं, बेरौनक, साल्टलेस मालूम पड़ने लगती है। स्वाद ही नहीं मालूम पड़ता। पुरुष में भी नहीं मालूम पड़ता।

फिर दौड़ शुरू होती है। अब उस स्त्री की तलाश शुरू होती है, जो पर्दे पर दिखाई पड़ी। वह कहीं नहीं है। वह पर्दे वाली स्त्री भी जिसकी पत्नी है, वह भी इसी परेशानी में पड़ा है। इसलिए वह कहीं नहीं है। क्योंकि घर पर वह स्त्री साधारण स्त्री है। पर्दे पर जो स्त्री दिखाई पड़ रही है, वह मैन्यूवर्ड है, वह तरकीब से प्रस्तुत की गई है, वह प्रेजेंटेड है ढंग से। सारी टेक्नीक, टेक्नोलाजी से, सारी आधुनिक व्यवस्था से–कैमरे, फोटोग्राफी, रंग, सज्जा, सजावट, मेकअप–सारी व्यवस्था से वह पेश की गई है। उस पेश स्त्री को कहीं भी खोजना मुश्किल है। वह कहीं भी नहीं है। वह धोखा है।

लेकिन वह धोखा मन को आंदोलित कर गया। आहार हो गया। उस स्त्री का आहार हो गया भीतर। अब उस स्त्री की तलाश शुरू हो गई; अब वह कहीं मिलती नहीं। और जो भी स्त्री मिलती है, वह सदा उसकी तुलना में फीकी और गलत साबित होती है। अब यह चित्त कहीं भी ठहरेगा नहीं। अब इस चित्त की कठिनाई हुई। यह सारी की सारी कठिनाई बहुत गहरे में गलत आहार से पैदा हो रही है।

रास्ते पर आप निकलते हैं, कुछ भी पढ़ते चले जाते हैं, बिना इसकी फिक्र किए कि आंखें भोजन ले रही हैं। कुछ भी पढ़ रहे हैं! रास्ते भर के पोस्टर लोग पढ़ते चले जाते हैं। किसने आपको इसके लिए पैसा दिया है! काहे मेहनत कर रहे हैं? रास्ते भर के दीवाल-दरवाजे रंगे-पुते हैं; सब पढ़ते चले जा रहे हैं। यह कचरा भीतर चला जा रहा है। अब यह कचरा भीतर से उपद्रव खड़े करेगा।

अखबार उठाया, तो एक कोने से लेकर ठीक आखिरी कोने तक, कि किसने संपादित किया और किसने प्रकाशित किया, वहां तक पढ़ते चले जाते हैं! और एक दफे में भी मन नहीं भरता। फिर दुबारा देख रहे हैं, बड़ी छानबीन कर रहे हैं। बड़ा शास्त्रीय अध्ययन कर रहे हैं अखबार का! कचरा दिमाग में भर रहे हैं। फिर वह कचरा भीतर बेचैनी करेगा। घास खाकर देखें, कंकड़-पत्थर खाकर देखें, तब पता चलेगा कि पेट में कैसी तकलीफ होती है। वैसी खोपड़ी में भी तकलीफ हो जाती है। लेकिन वह, हम सोचते हैं, आहार नहीं है; वह तो हम पढ़ रहे हैं; ऐसी ही, खाली बैठे हैं। खाली बैठे हैं, तब कंकड़-पत्थर नहीं खाते!

नहीं; हमें खयाल नहीं है कि वह भी आहार है। बहुत सूक्ष्म आहार है। कान कुछ भी सुन रहे हैं। बैठे हैं, तो रेडिओ खोला हुआ है! कुछ भी सुन रहे हैं! वह चला जा रहा है दिमाग के भीतर। दिमाग पूरे वक्त तरंगों को आत्मसात कर रहा है। वे तरंगें दिमाग के सेल्स में बैठती जा रही हैं। आहार हो रहा है।

और एक बार भोजन इतना नुकसान न पहुंचाए, क्योंकि भोजन के लिए परगेटिव्स उपलब्ध हैं। अभी तक मस्तिष्क के लिए परगेटिव्स उपलब्ध नहीं हैं। अभी तक मस्तिष्क में जब कब्ज पैदा हो जाए, और अधिक मस्तिष्क में कब्ज है–कांस्टिपेशन दिमागी–और उसके परगेटिव्स हैं नहीं कहीं। तो बस, खोपड़ी में कब्ज पकड़ता जाता है। सड़ जाता है सब भीतर। और किसी को होश नहीं है।

संयमी या नियमी आहार वाले व्यक्ति से कृष्ण का मतलब है, ऐसा व्यक्ति, जो अपने भीतर एक-एक चीज जांच-पड़ताल से ले जाता है; जिसने अपने हर इंद्रिय के द्वार पर पहरेदार बिठा रखा है विवेक का, कि क्या भीतर जाए। उसी को भीतर ले जाऊंगा, जो उत्तेजक नहीं है। उसी को भीतर ले जाऊंगा, जो शामक है। उसी को भीतर ले जाऊंगा, जो भीतर चित्त को मौन में, गहन सन्नाटे में, शांति में, विराम में, विश्राम में डुबाता है; जो भीतर चित्त को स्वस्थ करता है, जो भीतर चित्त को संगीतबद्ध करता है, जो भीतर चित्त को प्रफुल्लित करता है।

गीता दर्शन 

ओशो 

Tuesday, December 20, 2016

Osho speech mp3 64kbps

Osho Love everyone
If you listen OSHO
Then it's a great gift for you.                                         Download in few seconds.                                  सदगुरु ओशो की अमृतवाणी हिंदी में कुछ बेहतरीन प्रवचन -R-S- सीरीज से शुरू होने वाले सारे प्रवचन 64kbps में.. हर एल्बम के साथ एक लिंक दी गई हुई है उस पर क्लिक करें ओर डाउनलोड करें पूरा एल्बम...

रहिमन धागा प्रेम का....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fpfmongjqbo02dqv9q3f7

राम दुआरे जो मरे....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fk55yy4imj2f2c6s97w9j

साधना पथ (अंतर्यात्रा) https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F8d13vkwhtrraswva7z07

सहज आशिकी नाही...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fzxlwdoc46lcvcs066gvb

साधना पथ (पथ की खोज)  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fgzi2g678uoh7o1l40689

साधना पथ (प्रभु की पगडंडियां)  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Ffbigkjppg3y8jsrq4mx2

सहज मिले अविनाशी... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Favp2dku3yvmk9376kbjp

सहज समाधि भली...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fkj4eeu1h4c4sy2yljjqw

सहज योग....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fpbjgfs4p6e3q8o3y1gbq

साहिब मिले साहिब भावे.... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F1miucm5gasfzqr9nqlwi

साक्षी की साधना....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F4wtjdpmmhoah5jp8i4wb

समाधि कमल..... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fraur6hs65s24unmp0ew5

समाधि के द्वार पर....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Ffse2jdu862galjpckta7

समाधि के सप्त द्वार....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fmrvetmhyi0gy4y392gf9

संभोग से समाधि की ओर... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fmyf6xpiv3bhdk4fm75zp

संबोधि के क्षण...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Faim1ss4qzdkm2youbkqd

समुद्र समान बूंद में.... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fj0hj3t2vnphczuydakeb

संतो मगन भयो मन मेरा...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fmovivq7n4v36qc2nyzkh

सपना ये संसार...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Feu7x8qats2nxxl6qxujn

सत्य की प्यास...  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F0a4gol9lioxwc6m1p0ut

शिक्षा और धर्म....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fj7n54vkfo1hjz7e3rdad

शिक्षा में क्रांति....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fts3kbyhe2pfokaogpu6i

शिव सूत्र....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fyy98jyok33hg5aaimq17

शुन्य के पार....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F3oxcrnvbn6m4sntynjts

शुंन्य समाधि... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fxomi413t9l1052i45aun

सुख और शांति....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F84czqby70f5xfqc3826r

सुमिरन मेरा हरि करे....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2F95fg9h1etqtwsc2h2wqr

स्वर्ण पाखी था जो कभी... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fd0iwqa04jvaukqheoawp

स्वयं की सत्ता....  https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fhl48i4v3tk023tvkle8r

सुनो भाई साधु.... https://m.box.com/shared_item/https%3A%2F%2Fapp.box.com%2Fs%2Fm376yf5dpgqg92tw8vxx

यह -R-S-से शुरू होने वाले कुछ बेहतरीन एल्बम है यह आप यह सारे एल्बम डाउनलोड कर सकते हैं Link साथ में दी गई है ...
Osho

🙏😊🌹

Friday, December 16, 2016

प्रेम मृत्यु से महान है

युवती है एक सुंदर। तीन हैं उसके प्रेमी। प्रेयसी एक, प्रेमी तीन।
पहली बात समझ लेनी जरूरी है। परमात्मा एक,प्रेमी अनेक। अनंतता प्रेमियों की है; प्रेयसी की अनंतता नहीं है, प्रेयसी एक है।

कहानी कहती है कि युवती को बड़ी कठिनाई है, कैसे चुनें! तीनों समान गुणधर्मा हैं। समान बुद्धिमान हैं, सुंदर हैं,स्वस्थ हैं। गुणों की तरफ से तौलने का कोई उपाय नहीं है। तीनों का प्रेम है उसकी तरफ। अगर गुणों में कमी-बेशी होती तो चुनाव आसान हो जाता। लेकिन वे तीनों समान गुणधर्मा हैं।

इसे थोड़ा समझना चाहिए। असल में प्रेम के लिए गुणों का सवाल ही नहीं है। जहां गुण का सवाल है, वहां बुद्धि प्रवेश कर जाती है।

बुद्धि सोचती है कि किसका गुण ज्यादा, किसका कम। बुद्धि तुलना करती है। बुद्धि हिसाब बिठाती है। तो सच नहीं है यह बात, कि तीनों समान गुणधर्मा थे; क्योंकि हो नहीं सकते। ऐसा युवती को दिखाई पड़ता है, तीनों समान गुणधर्मा हैं। तीनों हो नहीं सकते समान गुणधर्मा; क्योंकि दो समान होते ही नहीं। थोड़े से गणित को खोजने की जरूरत थी और पता चल जाता कि कोई गुण में ज्यादा है, कोई गुण में कम है। क्योंकि इस जगत में समान वस्तुएं होती ही नहीं। दो कंकड़ एक जैसे नहीं होते तो दो व्यक्ति तो एक जैसे कैसे हो सकते हैं? लेकिन यह सवाल बुद्धि का है। बुद्धि तौल करती है, माप करती है। बुद्धि का अर्थ है माप; मेज़रमैंट।

लेकिन हृदय बुद्धि से सोचता ही नहीं। इसलिये जब परमात्मा के निकट हजारों प्रेमियों की प्रार्थनायें होती हैं तो तुम यह मत सोचना कि मैं ज्यादा बुद्धिमान हूं इसलिये मेरी प्रार्थना पहले सुन ली जायेगी; कि मैं ज्यादा धनी हूं इसलिये मेरी आवाज पहले पहुंच जायेगी; कि मैं बड़ा चित्रकार हूं, मूर्तिकार हूं, या राजनीतिज्ञ हूं, इसलिये पंक्ति में मुझे पहले खड़े होने का मौका मिल जायेगा। नहीं, तुम्हारे गुणों का कोई सवाल नहीं। बल्कि तुम गुणों पर अगर निर्भर रहे तो यही तुम्हारा योग्यता का आधार होगा। तुम्हारा हृदय जांचा जायेगा।

युवती के सामने तीनों थे, उसे तीनों समान दिखते थे। प्रेम से भरा हुआ हृदय बुद्धि से सोचता नहीं। इसलिये अगर कभी तुम्हारा हृदय सच में ही प्रेम से भर जाये तो तुम भी मापत्तौल में मुश्किल अनुभव करोगे।

उस युवती को तीनों समान दिखाई पड़े। प्रेम को सदा तीनों समान दिखाई पड़ेंगे। प्रेम तुलना करता ही नहीं। और चूंकि यह कथा तो मूलतः परमात्मा की है, इसलिये परमात्मा को भक्त समान दिखाई पड़ेंगे। उनके गुणों से कोई भेद नहीं पड़ता। एक भक्त काशी से पांडित्य लेकर आया है और एक भक्त गांव का अज्ञानी है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। काशी का पंडित यह दावा नहीं कर सकता कि मेरे पास पांडित्य अतिरिक्त है। भक्ति के साथ कुछ और भी मेरे पास है, इसलिये पहले मौका मुझे मिलना चाहिए। ना, कोई गुणों का सवाल नहीं है। हृदय के भाव का ही सवाल है। लेकिन भाव को तौलना बड़ा मुश्किल है। गुण तौले जा सकते हैं, परीक्षा हो सकती है, भाव नहीं तौला जा सकता है। भाव इतना निगूढ़ है,इतना रहस्यपूर्ण है, उसके लिए कोई तराजू निर्मित नहीं हो सके।
प्रेम को मापना मुश्किल है। कैसे हम मापें कि प्रेम है, या प्रेम नहीं है, या कितना है? बुद्धि से तो प्रश्न पूछे जा सकते हैं, बुद्धि उत्तर देगी; उत्तरों से पता चल जायेगा। प्रेम से कोई प्रश्न नहीं पूछे जा सकते।

प्रेम तो सिर्फ परिस्थिति में पता चलेगा। इसे थोड़ा समझ लें। प्रेम तो किसी घटना से पता चलेगा। प्रेम तो किसी ऐसी अवस्था में पता चलेगा, जो मौजूद हो जाये। तीन व्यक्ति तुम्हें प्रेम करते हैं और तुम डूब रहे हो नदी में, उस वक्त पता चलेगा कि उन तीन में से कौन अपनी जान को जोखिम पर लगाता है? कौन छलांग लेता है? कौन तुम्हें बचाने जाता है?परिस्थिति चाहिए। जीवंत परिस्थिति चाहिए तो ही प्रेम का पता चलेगा। इसलिये कहानी बड़ी साफ है।

कहानी कहती है, लड़की तय न कर पाई कि किसको चुनें। तीनों समान गुणधर्मा मालूम हुए और तीनों का प्रेम मालूम होता था। अब कोई परिस्थिति ही प्रगट कर सकती है।

परिस्थिति सूफियों ने जो चुनी है, वह मौत। प्रेम का ठीक पता मौत के क्षण में ही चलता है, उसके पहले नहीं। यह बड़ी अजीब बात है। जीवन में प्रेम की जांच नहीं हो पाती,मौत में प्रेम की जांच होती है। क्योंकि जीवन में तो हम धोखा दे सकते हैं, इसलिये जो स्त्रियां अपने प्रेमियों के लिए मर गईं आग में जलकर उन्होंने खबर दी, कि प्रेम था। जिंदा में तो सभी स्त्रियां अपने पतियों से कहती हैं कि तुम्हारे बिना न जी सकूंगी, मर जाऊंगी। यह सवाल नहीं है। कौन मरता है! यह कोई उत्तर की बात हो तो सभी पत्नियां यही कहती हैं कि तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, तुम्हारे बिना क्षण भर न जी सकूंगी। लेकिन कोई मरता नहीं। पति मर जाता है, थोड़ा रोना-धोना होता है, फिर जिंदगी शुरू हो जाती है। घाव भर जाते हैं। फिर नये प्रेमी मिल जाते हैं।

मृत्यु ही प्रेम की जांच बन सकती है, क्योंकि मृत्यु से गहरी कोई घटना नहीं है। इसलिये प्रेम को जांचने के लिए उससे छोटी कोई चीज काम नहीं आयेगी।
प्रेम इतना गहरा है, जितनी मृत्यु।

इसलिये जो जानते हैं, वे जानते हैं कि प्रेम और मृत्यु समान हैं, उनमें एक गहरा पर्याय है। दोनों एक जैसे हैं और उनकी गहराई बराबर एक जैसी है। प्रेम का अर्थ है, तुम्हारे केंद्र तक छिद जाये तीर। मृत्यु में भी केंद्र तक तो तीर छिदता है।
कहानी कहती है, वह युवती मर गई अचानक। इसके सिवाय कोई मार्ग भी न था। जानने का बस एक ही उपाय था कि मृत्यु के बाद क्या व्यवहार है प्रेमियों का। उनमें से तीनों बड़े दुखी हुए, रोये, पीटे, खिन्न हुए, उदास हुए। जीवन से अर्थ खो गया। एक कब्र पर ही रह गया। दूसरा विपन्न पिता की सेवा में लग गया। लड़की मर गई और पिता बहुत दुखी और बूढ़ा। और तीसरा विरागी हो गया, संन्यस्त हो गया, घर छोड़कर फकीर हो गया।

तीनों ने जो भी व्यवहार किया, वह प्रेमपूर्ण है। क्योंकि विपन्न पिता की सेवा में लग जाना...इस पिता से तो कोई संबंध न था, सिर्फ प्रेयसी का पिता था। और प्रयेसी मर गई, अब क्या संबंध था? मरते ही हमारे सब संबंध टूट जाते हैं। क्योंकि सेतु ही मिट गया तो अब इस पिता से क्या लेना-देना था! लेकिन यह पिता दुखी था, मरी हुई प्रेयसी का पिता था। एक युवक पिता की सेवा में लग गया।

दूसरे के जीवन में अर्थ खो गया। जब प्रेयसी ही मर गई अब कुछ पाने को न बचा, वह फकीर हो गया। वह परमात्मा की तलाश पर निकल गया। तीसरे ने जैसे होश-हवास खो दिया। न कुछ करने को बचा, न कुछ खोजने को बचा। फकीरी तक व्यर्थ मालूम पड़ी। वह वहीं कब्र पर घर बनाकर रहने लगा। वह कब्र ही उसका घर हो गयी।

तीनों ने प्रेमपूर्ण व्यवहार किया लेकिन तीनों के प्रेम बड़े अलग-अलग मालूम पड़ते हैं। भेद शुरू हो गया। परिस्थिति ने भेद साफ कर दिया। जो युवक पिता के पास रहने लगा, उसका प्रेम दया, करुणा, सहानुभूति जैसा था। परिस्थिति ने उघाड़ा हृदय को; और कोई जांचने का उपाय न था। उसके प्रेम में दया थी। लेकिन ध्यान रहे, दया और प्रेम बड़ी अलग बातें हैं। और प्रेमी दया नहीं मांगता, और अगर तुम प्रेमी को दया करो तो दुखी होता है। क्योंकि दया तो सदा अपने से नीचे पर की जाती है। प्रेम समान है; वह किसी को नीचे नहीं रखता। प्रेम दूसरे को समकक्ष मानता है। दया तो नीचे के प्रति की जाती है। दया में तुम ऊपर हो जाते हो। और दया का पात्र नीचा हो जाता है। दया तो भिक्षा जैसी है। प्रेम और दया पर्यायवाची नहीं हैं।

प्रेम बड़ी अनूठी घटना है। दया बड़ी साधारण बात है। दया तो कोई भी बुद्धिमान आदमी कर लेगा--करनी चाहिए। लेकिन दया निष्प्राण है। वह ऐसा पक्षी है जो मर चुका, जिसमें तुमने भुसा भरकर घर पर रख दिया है, दूर से जीवित दिखाई पड़ता है।

प्रेम उड़ता हुआ पक्षी है आकाश में--जीवंत! दया मरा हुआ पक्षी है, जिसमें भूसा भरके रख दिया है। देखने में जीवंत से भी ज्यादा स्वस्थ मालूम पड़ सकता है--बस देखने में। भीतर वहां प्राण नहीं है।

एक युवक निष्ठावान था; दया और करुणा से सेवा में लग गया।
सूफी फकीर कहते हैं कि दया तुम्हें परमात्मा तक नहीं पहुंचायेगी। दया नैतिक है, प्रेम धर्म है। इसलिये तुम गरीबों की सेवा करो, भूमिहीनों को भूमि दिलवाओ, बीमारों का हाथ-पैर दाबो। अगर यह कर्तव्य है तो तुम चूक गये।

दूसरा युवक संन्यस्त हो गया, विरागी हो गया। उसका प्रेम भी बहुत गहरा न रहा होगा, उथला रहा होगा। तभी तो मृत्यु ने सारी बदलाहट कर दी। जहां राग था, वहां विराग आ गया। प्रेम अगर गहरा होता तो इतना आसान परिवर्तन नहीं था। छोड़कर, फकीर होकर चल पड़ा। देखने में तो हमें लगेगा कि बड़ा प्रेमी था। सब छोड़ दिया! लेकिन प्रेम अगर गहरा हो तो देख ही नहीं पाता कि प्रेयसी मर सकती है।

प्रेम सदा अमृत को देखता है।
यह कोई प्रेमी नहीं था, यह इस स्त्री को भोगने को उत्सुक था। और जब स्त्री मर गई, भोग का द्वार बंद हो गया तो खिन्न और उदास! इसका जो संन्यास है, वह भी वास्तविक नहीं है; वह खिन्नता से पैदा हुआ है, उदासी से पैदा हुआ है,निराशा से पैदा हुआ है। और इस फर्क को ठीक से समझ लेना।

अगर तुम्हारा धर्म संसार की निराशा से पैदा हुआ है तो तुम्हारा धर्म वास्तविक नहीं हो सकता। क्योंकि निराशा से सत्य का कहीं जन्म हुआ है? और दुख से कहीं मोक्ष मिला है?दुख से जो बीज खिलेगा, उसमें दुख के ही बीज लगेंगे।
अगर तुम्हारा संन्यास संसार के अनुभव से पैदा हुआ हो, तब बात दूसरी है। अगर तुम्हारा संन्यास संसार के सुख से पैदा हुआ हो और संसार के सुख ने तुम्हें इशारा किया हो कि और महासुख की संभावना है, और तुम परमात्मा की खोज में गये हो, यह बात बिलकुल अलग है। यह एक विधायक तत्व है।
ओशो
बिन बाती बिन तेल- प्रवचन 6

Saturday, December 10, 2016

ओशो का जीवन परिचय

11 दिसंबर 1931 को जब मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव (रायसेन जिला) में ओशो का जन्म हुआ तो कहते हैं कि पहले तीन दिन न वे रोए, न दूध ‍पिया। उनकी नानी ने एक ज्योतिषी से ओशो की कुंडली बनवाई, जो अपने आप में काफी अद्‍भुत थी। कुंडली पढ़ने के बाद ज्योतिषी ने कहा- 'यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी पूर्ण कुंडली बनाऊँगा- क्योंक‍ि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है। ज्योतिष ने साथ ही यह भी कहा था कि 7 वर्ष की उम्र में बच गया तो 21 में मरना तय है, लेकिन यदि 21 में भी बच गया तो यह विश्व विख्यात होगा।'

सात वर्ष की उम्र में ओशो के नाना की मृत्यु हो गई तब ओशो अपने नाना से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु उन्हें अपनी मृत्यु लग रही थी वे सुन्न और चुप हो गए थे लगभग मृतप्राय। लेकिन वे बच गए और सात वर्ष की उम्र में उन्हें मृत्यु का गहरा अनुभव हुआ। 14 वर्ष की उम्र में उनके शरीर पर एक जहरिला सर्प बहुत देर तक लिपटा रहा। फिर 21 वर्ष की उम्र में उनके शरीर और मन में जबरदस्त परिवर्तन होने लगे उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं तो एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, जहाँ उन्हें संबोधि घटित हो गई।

ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनर्जीवित किया है। ओशो ने पुनः उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। ओशो की नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। ओशो कहते हैं-

'आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। यह जीवन से भगोड़ापन है, और आसान भी है। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी की पूजा होती आई है। वह दरअसल उसकी नहीं, उसके वस्त्रों की पूजा है। वह सन्यास आसान है क्योंकि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका। सन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-सन्यास के मौलिक रूप में।'

ओशो सरस संत और प्रफुल्ल दार्शनिक हैं। उनकी भाषा कवि की भाषा है उनकी शैली में हृदय को द्रवित करने वाली भावना की उच्चतम ऊँचाई भी है और विचारों को झँकझोरने वाली अकूत गहराई भी। उनकी गहराई का जल दर्पण की तरह इतना निर्मल है कि तल को देखने में दिक्कत नहीं होती। उनका ज्ञान अँधकूप की तरह अस्पष्ट नहीं है। कोई साहस करे, प्रयोग करे तो उनके ज्ञान सरोवर के तल तक सरलता से जा सकता है।

ओशो ने जीवन में कभी कोई किताब नहीं लिखी। मगर दुनिया भर में हुए संतों और अध्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला में वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनका बोला गया एक-एक शब्द प्रिंट, ऑडिओ और वीडिओ में उपलब्ध है। आज ओशो एक ऐसी शख्सियत हैं जिनको दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाता हैं। उनकी किताबों का सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

महान दार्शनिक- विचारक ओशो ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की और व्यक्ति को उसकी अपनी आंतरिक क्षमता से अवगत कराया है और बुद्धत्व का पथ प्रशस्त किया है। उन्होंने आदमी की पिच्छलग्गू प्रवृत्ति को ललकारा और उसकी अदम्य, अनंत ऊर्जा शक्ति को उजागर करके उसे एक गौरव दिया। दुनिया को एकदम नए विचारों से बौद्धिक जगत को हिला देने वाले, भारतीय गुरु ओशो से अमेरिकी सरकार इस कदर प्रभावित हुई कि भय से ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था।

ओशों की पुस्तकों के लिए दुनिया की 54 भाषाओं में 2567 प्रकाशन करार हुए हैं। ओशो साहित्य की सालाना बिक्री तीस लाख प्रतियों तक होती है। ओशो की पुस्तकों का पहला मुद्रण 25 हजार तक होना मामूली बात है। ओशो की पुस्तक 'जीवन की अभिनव अंतदृष्टि' सारी दुनिया में बेस्ट सेलर साबित हुयी है। वियतनाम और इंडोनेशिया में इसकी दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। पूरे देश में आज पूना (जहाँ ओशो का आश्रम है) एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ से सबसे अधिक कोरियर और डाक विदेश जाती है।