Wednesday, November 30, 2016

एक तनावग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता है। क्यों?

एक तनावग्रस्त आदमी प्रेम नहीं कर सकता है। क्यों? क्योंकि तनावग्रस्त आदमी सदा उद्देश्य से, प्रयोजन से जीता है। वह धन कमा सकता है, लेकिन प्रेम नहीं कर सकता। क्योंकि प्रेम प्रयोजन—रहित है। प्रेम कोई वस्तु नहीं है। तुम उसे संगृहीत नहीं कर सकते, तुम उसे बैंक—खाते में नहीं रख सकते हो। तुम उससे अपने अहंकार की पुष्टि नहीं कर सकते हो। सच तो यह है कि प्रेम सब से अर्थहीन काम है; उससे आगे उसका कोई अर्थ नहीं है,उससे आगे उसका कोई प्रयोजन नहीं है। प्रेम अपने आप में जीता है, किसी अन्य चीज के लिए नहीं।

तुम धन कमाते हो—किसी प्रयोजन से। वह एक साधन है। तुम मकान बनाते हो—किसी के रहने के लिए। वह भी एक साधन है। प्रेम साधन नहीं है। तुम क्यों प्रेम करते हो? किसलिए प्रेम करते हो?

प्रेम अपना लक्ष्य आप है। यही कारण है कि हिसाब—किताब रखने वाला मन, तार्किक मन, प्रयोजन की भाषा में सोचने वाला मन प्रेम नहीं कर सकता। और जो मन प्रयोजन की भाषा में सोचता है वह तनावग्रस्त होगा। क्योंकि प्रयोजन भविष्य में ही पूरा किया जा सकता है, यहां और अभी नहीं।

तुम एक मकान बना रहे हो, तुम उसमें अभी ही नहीं रह सकते। पहले बनाना होगा। तुम भविष्य में उसमें रह सकते हो, अभी नहीं। तुम धन कमाते हो, बैंक बैलेंस भविष्य में बनेगा, अभी नहीं। अभी साधन का उपयोग कर सकते हो, साध्य भविष्य में आएंगे।

प्रेम सदा यहां है और अभी है। प्रेम का कोई भविष्य नहीं है। यही वजह है कि प्रेम ध्यान के इतने करीब है। यही वजह है कि मृत्यु भी ध्यान के इतने करीब है। क्योंकि मृत्यु भी यहां और अभी है, वह भविष्य में नहीं घटती।

क्या तुम भविष्य में मर सकते हो? वर्तमान में ही मर सकते हो। कोई कभी भविष्य में नहीं मरा। भविष्‍य में कैसे मर सकते हो? या अतीत में कैसे मर सकते हो? अतीत जा चुका, वह अब नहीं है। इसलिए अतीत में नहीं मर सकते। और भविष्य अभी आया नहीं है, इसलिए उसमें कैसे मरोगे?

मृत्यु सदा वर्तमान में होती है। मृत्यु, प्रेम और ध्यान, सब वर्तमान में घटित होते हैं। इसलिए अगर तुम मृत्यु से डरते हो तो तुम प्रेम नहीं कर सकते। अगर तुम मृत्यु से भयभीत हो तो तुम ध्यान नहीं कर सकते। और अगर तुम ध्यान से डरे हो तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ होगा। किसी प्रयोजन के अर्थ में जीवन व्यर्थ नहीं होगा, वह व्यर्थ इस अर्थ में होगा कि तुम्हें उसमें किसी आनंद की अनुभूति नहीं होगी। जीवन अर्थहीन होगा।

इन तीनों कों—प्रेम, ध्यान और मृत्यु कों—स्थ साथ रखना अजीब मालूम पड़ेगा। वह अजीब है नहीं। वे समान अनुभव हैं। इसलिए अगर तुम एक में प्रवेश कर गए तो शेष दो में भी प्रवेश पा जाओगे।

                                            
Osho

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