Tuesday, November 29, 2016

जब दुख हो तब क्या करें

जब दुख हो, द्वार बंद कर लें। दिल खोलकर रोएँ, पीटें, छाती पीटें, जो भी करना हो करें। किसी दूसरे पर न निकालें।

हम दुख भी दूसरे पर निकालते हैं। इसलिए अगर लोगों की चर्चा सुनो तो लोग अपने दुख एक-दूसरे को सुनाते रहते हैं -- यह निकालना है। लोगों की चर्चा का नब्बे प्रतिशत दुखों की कहानी है। अपनी बीमारियाँ, अपने दुख, अपनी तकलीफें दूसरे पर निकाल रहे हैं।

मन -- लोग कहते हैं, कह देने से हल्का हो जाता है! आपका हो जाता होगा, दूसरे का क्या होता है, इसका भी तो सोचें। आप हल्के होकर घर आ गए, और उनको जिनको फँसा आए आप!

इसलिए लोग दूसरे के दुख की बातें सुनकर भी अनसुनी करते हैं, क्योंकि वे अपना बचाव करते हैं। आप सुना रहे हैं, वे सुन रहे हैं, लेकिन सुनना नहीं चाहते।

जब आपको लगता है कि कोई आदमी बोर कर रहा है तो उसका कुल मतलब इतना ही होता है कि वह कुछ सुनाना चाह रहा है, निकालना चाह रहा है, हल्का होना चाह रहा है और आप भारी होना नहीं चाह रहे हैं। आप कह रहे हैं, क्षमा करो। या यह हो सकता है कि आप खुद ही उसको बोर करने का इंतजाम किए बैठे थे, वह आपको कर रहा है।

दुख भी दूसरे पर मत निकालें। दुख को भी एकांत ध्यान बना लें। क्रोध भी दूसरे पर मत निकालें, एकांत ध्यान बना लें। शून्य में होने दें विसर्जन और जागरूक रहें, होशपूर्वक।

आप थोडे दिन में ही पाएँगे कि एक नई जीवन-दिशा मिलनी शुरू हो गई, एक नया आयाम खुल गया। दो आयाम थे अब तक -- दबाओ या निकालो। अब एक तीसरा आयाम मिला, विसर्जन।

यह तीसरा आयाम मिल जाए तो ही आपका होश सधेगा, और होश से अस्त-व्यस्तता न आएगी। और जीवन ज्यादा शांत, ज्यादा मौन, ज्यादा मधुर हो जाएगा।

प्यारे ओशो
'महावीर वाणी'
प्रवचन 37 का एक अंश

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