Thursday, February 16, 2017

लोग कहते हैं कि मैं आपको छोड़ दूं। और वह भी असंभव

आपकी बातें क्या सुनीं, बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। आंसू थमते ही नहीं हैं। याद भी प्रतिपल बनी रहती है। मुझे यह क्या हो रहा है? लोग कहते हैं कि मैं आपको छोड़ दूं। और वह भी असंभव मालूम पड़ता है।

इब्‍तिदा—ए—इश्क है रोता है क्या!
आगे—आगे देखिए होता है क्या
शुरुआत है अभी तो। अभी तो पहले कदम पड़े हैं। घबड़ाओ न। चिंता न लो।
इश्क जब तक न कर चुके रुसवा
आदमी काम का नहीं होता
जब तक प्रेम बरबाद न कर दे, बदनाम न कर दे, तब तक आदमी काम का होता ही नहीं।
तुम पूछते हो, मुझे क्या हो गया है? प्रेम हो गया है तुम्हें। तुम्हारा भाव भक्ति में रूपांतरित हो रहा है। और यह बड़े सौभाग्य से होता है।
नसीबों से मिलता है दर्दे—मुहब्बत
यहां मरनेवाले ही अच्छे रहे हैं
जो प्रेम में मर जाएं वे अमृत को पा जाते हैं। और बड़े भाग्य से मिलता है यह दर्द, यह पीड़ा। यह सभी को नहीं मिलती।
आंसू आएं, उन्हें प्रार्थना बनाओ।
क्यों हिज्र के शिकवे करता है
क्यों दर्द के रोने रोता है।
अब इश्क है तो सब भी कर
इसमें तो यही कुछ होता है
और यह तो शुरुआत है। यह तो पहली बूंदाबांदी है। अभी तो मूसलाधार वर्षा होगी जो सब बहा ले जाएगी—सब जो तुमने अपना माना है, सब जैसा तुमने अपने को माना है। और जब तुम पूरे के पूरे बह जाओगे इस बाढ़ में, पीछे जो शेष रह जाएगा, वही तुम्हारा स्वत्व है; वही तुम्हारा सार है। सत्य कहो उसे, परमात्मा कहो उसे, निर्वाण कहो उसे; या जो नाम देना चाहो, दो।
जब सब इस बाढ़ में बह जाएगा इन आंसुओ में, यह विक्षिप्तता जब सब तुम्हारे तर्कजाल तोड़ देगी, यह प्रेम जब धीरे— धीरे तीर की तरह तुम्हारे हृदय के अंतस्तल में चुभ जाएगा तब... तब तुम्हें पता चलेगा तुम कितने सौभाग्यशाली हो। तुम्हें जलस्रोत मिल जाएंगे। भीतर खोदने से ही मिलते हैं। और प्रेम की कुदाल लेकर कोई खोदता है तो ही भीतर खुदाई होती है।
दिक्कतें आएंगी। बदनामी होगी।
फिरते हैं मीर ख्वार कोई पूछता नहीं
इस आशिकी में इज्जते—सादात भी गई
कोई पूछेगा भी नहीं। पहले तो लोग कहेंगे कि पागल हो गए। पहले लोग कहेंगे, यह तुम्हें क्या हो गया? फिर धीरे— धीरे लोग कहेंगे, अब हो ही गया, पूछना भी क्या! लोग रास्ता काटकर निकल जाएंगे। लोग जयरामजी तक करने में डरेंगे। पागलों से कौन दोस्ती रखता है? और पागलों के साथ रहो तो दूसरे लोग समझने लगते हैं कि तुम भी पागल हो रहे हो।
फिरते हैं मीर ख्वार कोई पूछता नहीं।
इस आशिकी में इज्जते—सादात भी गई
यह प्रेम ऐसा है, इसमें सब चला जाता है। सय्यद होने का जो सम्मान था वह भी गया—इज्जते—सादात भी गई। इसमें तो सब गंवाना पड़ता है। लेकिन जो गंवाते हैं वे ही पाते हैं।
और बहुत लोग तुम्हें समझाएंगे कि अभी रुक जाओ, अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। अभी ठहर जाओ। अभी तो दो ही कदम बढ़े हैं, लौट आओ। मगर प्रेम के रास्ते पर एक भी कदम पड़ जाए, तो पूरी मनुष्य—जाति के इतिहास में अभी तक ऐसा हुआ नहीं कि कोई लौट गया हो। रस ऐसा है। मादकता ऐसी है।

नाम सुमिर मन बावरे-(जगजीवन)--प्रवचन--2

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