Thursday, February 16, 2017

प्रेम और ध्यान

सन्यास के पंक्षी के दो पंख है – प्रेम और ध्यान ।
जहा सन्यास है, वहा प्रेम है, वहा ध्यान है ।
ध्यान का अर्थ होता है- अकेले मे आनंदित होने की क्षमता,
एकान्त मे भी रसमग्न होने की पात्रता ।
और प्रेम का अर्थ होता है- संग साथ मे आनन्दित होने की क्षमता ।
ध्यान तो है, जैसे कोई बॉसुरी अकेली बजाये,
और प्रेम है आर्केस्ट्रा – बॉसुरी भी हो, तबला भी ताल दे,
सितार भी बजे और और साज हो ।
प्रेम है दो व्यक्तियो के बीच या अनेक व्यक्तिओ के बीच जुगलबंदी ।
ध्यान है – एकान्त मे, अकेले मे अपने ही प्राणो के साथ आनंद भाव ।
प्रेम है : वार्तालाप, संवाद, मै और तू के बीच सेतु का बनाना ।
ध्यान है : स्वयं की पर्याप्तता ।
नही कुछ चाहिए, बस अपना होना काफी है । ओशो ।

No comments:

Post a Comment