Sunday, March 25, 2018

याचना से जो मिला वो दो कौड़ी का है

याचना से कुछ मिले, दो कौड़ी का है। मांग कर कुछ मिले, मूल्य न रहा। बिन मांगे मिले, तो ही मूल्यवान है।
ध्यान रखना, इस जगत में भिखारी की तरह तुम अगर मांगते रहे, मांगते रहे,.. वही तो वासना है। वासना का अर्थ क्या है? मांग। तुम कहते हो : यह मिले, यह मिले, यह मिले! तुम जितना मांगते हो, उतना ही बड़ा भिखमंगापन होता जाता है, और उतना ही जीवन तुम्हें लगता है विषाद से भरा हुआ। तुम जो मांगते हो, मिलता नहीं मालूम होता।
स्वामी राम ने कहा है कि एक रास्ते से मैं गुजरता था। एक बच्चा बहुत परेशान था। सुबह थी, धूप निकली थी, सर्दी के दिन थे और बच्चा अपान में खेल रहा था। वह अपनी छाया को पकड़ना चाहता था। तो उचक—उचक कर छाया को पकड़ रहा था। बार—बार थक जाता था, दुखी हो जाता था, उसकी आंख में आंसू आ गए, फिर छलांग लगाता। लेकिन जब तुम छलांग लगाओगे, तुम्हारी छाया भी छलांग लगा जाती है। वह छाया को पकड़ने की कोशिश करता है, छाया नहीं पकड़ पाता है। राम खड़े देख रहे हैं, खिलखिला कर हंसने लगे। उस बच्चे ने राम की तरफ देखा। वे बड़े प्यारे संन्यासी थे, अदभुत संन्यासी थे! वे उस बच्चे के पास गए। उन्होंने कहा, जो मैं करता रहा जन्म—जन्म, वही तू कर रहा है। फिर मैंने तो तरकीब पा ली, मैं तुझे तरकीब बता दूं?
वह छोटा—सा बच्चा रोता हुआ बोला : बताएं, कैसे पकडूं?
राम ने उसका हाथ उठा कर उसके माथे पर रख दिया। देखा उधर छाया पर भी उसका हाथ माथे पर पड़ गया। वह बच्चा हंसने लगा। वह प्रसन्न हो गया।
उस बच्चे की मां ने राम से कहा, आपने हद कर दी! आपके बच्चे हैं?
राम ने कहा, मेरे बच्चे तो नहीं। लेकिन जन्मों—जन्मों का यही अनुभव मेरा भी है। जब तक दौड़ो, पकड़ो—हाथ कुछ नहीं आता। जब अपने पर हाथ रख कर बैठ जाओ, हाथ फैलाओ ही मत, मांगो ही मत, दौड़ो ही मत, छीना—झपटी छोड़ो—सब मिल जाता है।

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