Wednesday, January 25, 2017

प्रेम का पहला सबक है: प्रेम को मांगो मत, सिर्फ दो। एक दाता बनो।

प्रेम का पहला सबक है: प्रेम को मांगो मत, सिर्फ दो। एक दाता बनो।
लोग ठीक विपरीत कर रहे हैं। यहां तक कि जब वे देते हैं, तो इस ख्याल से देते हैं कि प्रेम को वापस आना चाहिए। यह एक सौदा है। वे बांटते नहीं हैं, वे खुलकर बांटते नहीं। वे एक शर्त के साथ बांटते हैं। वे अपनी आंखों के कोने से देखते रहते हैं, वापस आ रहा है या नहीं। बहुत गरीब लोग हैं! वे प्रेम के प्राकृतिक तरीके को नहीं जानते। तुम बस उंडेलो, वह आ जाएगा।

और अगर यह नहीं आ रहा है, तो चिंता की बात नहीं है क्योंकि एक प्रेमी जानता है कि प्रेम करने का अर्थ है खुश होना। यदि वह आता है, बहुत अच्छा, तो फिर खुशी बढ़ती है। लेकिन फिर भी अगर यह कभी नहीं आता है तो प्रेम करने से ही तुम इतने खुश हो जाते हो, मस्ती से भर जाते हो, कि किसे फिक्र वह आता है या नहीं ।

प्रेम का अपना आंतरिक आनंद है। यह तब होता है जब तुम प्रेम करते हो। परिणाम के लिए प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस प्रेम करना शुरू करो। धीरे-धीरे तुम देखोगे कि बहुत ज्यादा प्रेम वापस तुम्हारे पास आ रहा है। व्यक्ति प्रेम करता है और प्रेम करके ही जानता है कि प्रेम क्या है। जैसा कि तैराकी तैरने से ही आती है, प्रेम प्रेम के द्वारा ही सीखा जाता है।

लोग बहुत कंजूस होते हैं। वे किसी महान प्रेमिका के लिए इंतजार कर रहे हैं, तो ही वे प्रेम करेंगे। वे बंद रहते हैं, वे सिकुड़ जाते हैं। वे सिर्फ इंतज़ार करते हैं। कहीं से कोई क्लियोपेट्रा आएगी और फिर वे अपना दिल खोल देंगे, लेकिन उस समय तक वे पूरी तरह भूल जाएंगे कि इसे कैसे खोला जाए।

तुम बस जाकर चित्र बनाना शुरू नहीं करते सिर्फ इसलिए कि कैनवास उपलब्ध है और ब्रश है और रंग है। तुम पेंटिंग शुरू नहीं करते। तुम नहीं कहते 'सभी आवश्यक चीजें यहां हैं, तो मैं पेंट कर सकता हूं।' तुम पेंट कर सकते हो लेकिन इस तरह तुम एक चित्रकार नहीं बनोगे।

तुम एक स्त्री से मिलते हो - कैनवास वहां है। तुम तुरंत एक प्रेमी हो जाते हो, तुम पेंटिंग शुरू कर देते हो। और वह तुम पर पेंटिंग करना शुरू करती है। बेशक तुम दोनों मूर्ख साबित होते हो - चित्रित मूर्ख - और देर-सबेर तुम समझते हो कि क्या हो रहा है। लेकिन तुमने कभी नहीं सोचा था कि प्रेम एक कला है। कला तुम्हारे जन्म के साथ पैदा नहीं होती, तुम्हारे जन्म के साथ इसका कोई लेना-देना नहीं है। तुम्हें इसे सीखना होता है। यह सबसे सूक्ष्म कला है।

तुम एक क्षमता के साथ ही पैदा होते होगे। बेशक, तुम एक शरीर के साथ पैदा होते हो, तुम एक नर्तक हो सकते हो क्योंकि तुम्हारे पास शरीर है। तुम अपने शरीर को हिला सकते हो और तुम एक नर्तक हो सकते हो लेकिन नृत्य को सीखना पड़ेगा। नृत्य सीखने के लिए बहुत प्रयास करना जरूरी है। और नाच बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि तुम अकेले इसमें शामिल हो।

प्रेम अधिक कठिन है। यह किसी और के साथ नाच है। दूसरे के लिए भी जानने की जरूरत है कि नृत्य क्या है। किसी के साथ तालमेल बिठाना एक महान कला है। दो लोगों के बीच एक सामंजस्य बनाना … दो लोगों का मतलब दो अलग दुनियाएं। जब दो दुनियाएं करीब आती हैं, संघर्ष अनिवार्य है। तुम नहीं जानते कि कैसे सामंजस्य बनाना। प्रेम समस्वरितता है। और खुशी, स्वास्थ्य, समस्वरितता, सब कुछ प्रेम से उपजता है।

प्रेम करना सीखो। विवाह की जल्दी मत करो, प्रेम करना सीखो। सबसे पहले एक महान प्रेमी बन जाओ।

और आवश्यकता क्या है? आवश्यकता यह है कि एक महान प्रेमी हमेशा प्रेम देने के लिए तैयार है और इसकी परवाह नहीं करता कि वह लौटता है या नहीं। यह हमेशा वापस मिलता है, यह चीजों की प्रकृति में है। यह ऐसा ही है जैसे तुम पहाड़ों के पास जाओ और एक गीत गाओ, और घाटियां जवाब देती हैं। क्या तुमने पहाड़ों में, पहाड़ियों में, इको प्वाइंट को देखा है? तुम चिल्लाओ और घाटियां चिल्लाती हैं, या तुम गाते हो तो घाटियां गाती हैं। हर दिल एक घाटी है। यदि तुम इसमें प्रेम उंडेलो, यह जवाब देगा।

प्रेम का कोई भी अवसर मत खोओ। यहां तक कि एक गली में से गुजरते हुए तुम प्रेमपूर्ण हो सकते हो। यहां तक कि तुम भिखारी के साथ भी प्रेमपूर्ण हो सकते हो। कोई जरूरत नहीं है कि तुम्हें उसे कुछ देना है, तुम कम से कम मुसकुरा सकते हो। इसमें कुछ खर्च नहीं होता लेकिन तुम्हारी मुस्कान तुम्हारे दिल को खोलती है, तुम्हारे दिल को अधिक जीवित बनाती है। किसी का हाथ पकड़ो––चाहे दोस्त हो या अजनबी। इंतजार मत करो कि जब सही व्यक्ति होगा केवल तभी तुम प्रेम करोगे। तो फिर सही व्यक्ति कभी नहीं होगा। प्रेम किए जाओ। जितना अधिक तुम प्रेम करोगे, उतना सही व्यक्ति के आने की संभावना है क्योंकि तुम्हारा हृदय खिलना शुरू होता है। खिलता हुआ हृदय कई मधुमक्खियों, कई प्रेमियों को आकर्षित करता है।

तुम्हें एक बहुत ही गलत तरीके से प्रशिक्षित किया गया है। सबसे पहले, लोग एक गलत धारणा में जीते हैं कि सब लोग पहले से ही प्रेमी हैं। सिर्फ पैदा होने से तुम सोचते हो कि तुम एक प्रेमी हो। यह इतना आसान नहीं है। हां, एक संभावना है, लेकिन संभावना को प्रशिक्षित करना जरूरी है, अनुशासित करना जरूरी है। एक बीज मौजूद है, लेकिन उसका फूल बनना जरूरी है।

तुम अपना बीज सम्हाले रहो, कोई मधुमक्खी नहीं आएगी। क्या तुमने कभी मधुमक्खियों को बीज के लिए आते देखा है ? क्या वे नहीं जानतीं कि बीज फूल बन सकता है? लेकिन वे तभी आती हैं, जब बीज फूल बन जाते हैं। एक फूल बनो, बीज मत रहो।

दो लोग, जो अलग-अलग दुखी हैं, एक-दूसरे के लिए अधिक दुख पैदा करते हैं जब वे एक साथ होते हैं। यही गणितीय है। तुम दुखी थे, तुम्हारी पत्नी दुखी थी, और तुम दोनों को उम्मीद है कि एक साथ होने पर तुम दोनों खुश हो जाओगे? यह इतना सरल गणित है जैसे दो और दो चार। इतना सरल है। यह किसी उच्चतर गणित का हिस्सा नहीं है, यह बहुत आम है, तुम इसे अपनी उंगलियों पर गिन सकते हो। तुम दोनों दुखी हो जाओगे।

प्रणय निवेदन एक बात है। प्रणय निवेदन पर निर्भर मत रहो। वास्तव में इससे पहले कि तुम विवाह करो, प्रणय निवेदन से मुक्त हो जाओ। मेरा सुझाव है कि विवाह हनीमून के बाद हो, इससे पहले कभी नहीं होना चाहिए। अगर सब कुछ ठीक हो जाता है, तो ही विवाह होना चाहिए।

विवाह के बाद हनीमून बहुत खतरनाक है। जहां तक मुझे पता है, निन्यानबे प्रतिशत विवाह हनीमून के समय खत्म हो जाते हैं। लेकिन तब तुम फंस चुके होते हो, फिर तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं बचता। फिर तो पूरा समाज, कानून, कोर्ट––हर कोई तुम्हारे खिलाफ है अगर तुम पत्नी को छोड़ दो, या पत्नी तु्म्हें छोड़ दे। फिर सारी नैतिकता, धर्म, पुजारी, सब लोग तुम्हारे खिलाफ हैं। ऐसी व्यवस्था हो कि समाज विवाह के लिए हर तरह की बाधा खड़ी करे और तलाक के लिए कोई बाधा न बनाए। समाज लोगों को इतनी आसानी से विवाह करने की अनुमति न दे तो अच्छा होगा। अदालत को बाधाएं खड़ी करनी चाहिए - कम से कम दो साल के लिए महिला के साथ रहोगे तो ही अदालत तुम्हें विवाह करने के लिए अनुमति दे सकता है।

फिलहाल वे ठीक उल्टा कर रहे हैं। यदि तुम विवाह करना चाहते हो, कोई नहीं पूछता कि क्या तुम तैयार हो या यह सिर्फ एक मन की लहर है , सिर्फ इसलिए कि तुम स्त्री की नाक पसंद करते हो? हद मूर्खता है! कोई एक लंबी नाक के साथ नहीं रह सकता। दो दिनों के बाद नाक भुला दी जाएगी। कौन अपनी पत्नी की नाक को देखता है? पत्नी कभी सुंदर नहीं लगती, पति कभी खूबसूरत नहीं दिखता। एक बार जब तुम परिचित हो जाते हो तो सुंदरता गायब हो जाती है।

दो लोगों को एक साथ लंबे समय के लिए रहने की अनुमति दी जानी चाहिए, वे एक-दूसरे से परिचित हो जाएं, एक दूसरे की पहचान हो जाए। और अगर वे विवाह करना भी चाहते हैं, तो अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। फिर तलाक दुनिया से गायब हो जाएगी। तलाक मौजूद है, क्योंकि विवाह गलत हैं और जबरदस्ती से थोपे जाते हैं। तलाक मौजूद हैं, क्योंकि विवाह एक रोमांटिक मूड में किया जाता है।

रोमांटिक मूड अच्छा है अगर तुम एक कवि हो । और कवियों को अच्छे पति या पत्नियां होते नहीं देखा गया हैं। वास्तव में कवि लगभग हमेशा अविवाहित रहते हैं । वे हर कहीं डोरे डालते हैं लेकिन वे कभी पकड़े नहीं जाते और इसलिए उनका रोमांस जिंदा रहता है। वे कविता लिखते हैं, सुंदर कविता लिखते हैं। किसी स्त्री से या पुरुष से काव्यात्मक मूड में विवाह नहीं करना चाहिए। गद्य भावदशा को आने दो और फिर बस जाओ। क्योंकि रोजमर्रा का जीवन गद्य जैसा अधिक है, कविता की तरह कम। व्यक्ति को भलीभांति परिपक्व हो जाना चाहिए।

परिपक्वता का मतलब है कि व्यक्ति एक रोमांटिक मूर्ख नहीं है। वह जीवन को समझता है, वह जीवन की जिम्मेदारी को समझता है, किसी व्यक्ति के साथ होने की समस्याओं को समझता है। उन सब कठिनाइयों का स्वीकार करता है और फिर भी उस व्यक्ति के साथ रहने का फैसला लेता है। ऐसी उम्मीद नहीं करता कि सिर्फ स्वर्ग ही होने जा रहा है, और गुलाब ही गुलाब होंगे। किसी बकवास की उम्मीद नहीं है; वह जानता है कि वास्तविकता कठोर है। वह ऊबड़-खाबड़ है। गुलाब तो हैं, लेकिन दूर हैं और बीच-बीच में थोड़े से हैं; कांटे कई हैं।

जब तुम इन समस्याओं के प्रति सचेत हो जाओगे और उसके बावजूद तुम तय करोगे कि किसी एक व्यक्ति के साथ रहने की जोखिम लेना सार्थक है बजाय अकेले रहने के, तो विवाह कर लो। तो फिर विवाह प्रेम को कभी नहीं मार सकता, क्योंकि यह प्रेम यथार्थवादी है। विवाह केवल रोमांटिक प्रेम को मार सकते हैं। और रोमांटिक प्रेम वह है जिसे लोग पपी लव, यानी अल्हड़ प्रेम कहते हैं। उस पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे पोषण नहीं मानना चाहिए। यह आइसक्रीम की तरह ही हो सकता है। तुम इसे कभी-कभी खा सकते हो, लेकिन उस पर निर्भर मत रहो। जीवन को अधिक यथार्थवादी, अधिक गद्य होना चाहिए।

विवाह अपने आपमें कभी कुछ नष्ट नहीं करता। विवाह सिर्फ उसको बाहर लाता है जो तुममें छिपा है, वह उसे उघाड़ता है। यदि प्रेम पीछे छुपा हुआ है, भीतर छिपा हुआ है, तो विवाह उसे बाहर लाता है। अगर प्रेम सिर्फ एक बहाना था, बस एक प्रलोभन, तो देर-अबेर वह गायब हो जाएगा। और फिर तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारा कुरूप व्यक्तित्व प्रगट होता है। विवाह केवल एक अवसर है, इसलिए जो भी बाहर आ सकता है वह बाहर आ जाएगा।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि प्रेम ने विवाह को नष्ट कर दिया है। जो लोग प्रेम करना नहीं जानते उनके द्वारा प्रेम नष्ट हो जाता है। प्रेम इसलिए नष्ट होता है क्योंकि पहले तो, प्रेम होता ही नहीं। तुम एक सपने में जी रहे थे। हकीकत वह सपना नष्ट कर देती है। वरना प्रेम अनंत है, अनंतता का हिस्सा है। यदि तुम विकसित होते हो, अगर तुम इस कला को जानते हो, और जीवन की वास्तविकताओं को स्वीकार करते हो, तो यह हर दिन बढ़ता चला जाता है। विवाह प्रेम में विकसित होने का एक जबरदस्त अवसर बन जाता है।

प्रेम को कुछ नष्ट नहीं कर सकता। यदि यह है, तो बढ़ता चला जाता है। लेकिन मेरा मानना है कि प्रेम है ही नहीं। तुमने अपने को गलत समझा; कुछ और वहां था। शायद सेक्स था, सेक्स अपील था। तब तो यह नष्ट होगा ही, क्योंकि एक बार तुमने एक स्त्री को प्रेम किया तो सेक्स अपील गायब हो जाता है, क्योंकि सेक्स अपील अज्ञात के साथ ही होता है। एक बार जब तुम महिला या पुरुष के शरीर को भोग लेते हो है, तो सेक्स अपील गायब हो जाता है। यदि तुम्हारा प्रेम सिर्फ सेक्स अपील था तो यह गायब होगा ही। तो प्रेम को कभी कुछ और मत समझना। अगर प्रेम सच में प्रेम है ...

मेरा क्या मतलब है जब मैं कहता हूं 'सच में प्रेम?' मेरा मतलब है कि सिर्फ किसी दूसरे की मौजूदगी में अचानक तुम्हें खुशी होती है, सिर्फ किसी के साथ होने से तुम पर मस्ती छा जाती है। किसी के साथ होने भर से तुम्हारे हृदय में गहरे कुछ परितुष्ट हो जाता है ... तुम्हारे हृदय में कुछ संगीत शुरू होता है, तब तुम्हारा सामंजस्य बनता हैं। दूसरे की उपस्थिति मात्र तुम्हें अधिक अखंड, अधिक केंद्रित बनात, तुम्हारी जड़ें जमीन में गहरी जाती हैं, तो यह प्रेम है।

प्रेम एक जुनून नहीं है, प्रेम एक भावना नहीं है। प्रेम एक बहुत गहरी समझ है कि कोई और किसी तरह तुम्हें पूरा करता है। कोई तुमको एक पूरा वर्तुल बनाता है। किसी अन्य की उपस्थिति तुम्हारी उपस्थिति को बढ़ाती है। प्रेम तुम्हें स्वयं होने की स्वतंत्रता देता है, यह स्वामित्व नहीं है।

तो देखो। सेक्स को कभी प्रेम मत समझना, अन्यथा तुम धोखा खाओगे।

सतर्क रहो, और जब तुम किसी की सिर्फ उपस्थिति, शुद्ध उपस्थिति के साथ महसूस करने लगते हो - और कुछ नहीं, और किसी बात की जरूरत नहीं है, तुम कुछ भी नहीं पूछते - बस उपस्थिति, वह दूसरा तुम्हें प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है। कुछ तुम्हारे भीतर मुछ खिलना शुरू होता है, हजारों कमल खिलने हैं, तो तुम प्रेम में हो। और फिर तुम सभी कठिनाइयों से गुज़र सकते हो जो कि वास्तविकता पैदा करती है । कई पीड़ाएं, कई चिंताएं - तुम उन सभी से गुज़र जाओगे। और तुम्हारा प्रेम को अधिक से अधिक खिलेगा क्योंकि वे सभी स्थितियां चुनौतियां हो जाएंगी। और तुम्हारा प्रेम, उन पर काबू पाने से, अधिक से अधिक मजबूत बन जाएगा।

प्रेम अनंतता है। यदि वह है, तो यह बढ़ता चला जाता है, बढ़ता चला जाता है। प्रेम शुरुआत जानता है, लेकिन अंत नहीं जानता।

ओशो, दि डिसिप्लिन ऑफ ट्रासेन्डेन्स,, भाग 1, प्रवचन # 2

Osho discourse mp3

सदगुरु ओशो के बहुत सारे प्रेमी और संन्यासीओ के मैसेज आते हैं कि आप यह प्रवचन भेजो वह प्रवचन भेजो लेकिन इतने सारे ग्रुप से जुड़ा हुआ हूं इस सब को  भेजना संभव नहीं क्योंकि नेट की भी मर्यादा हे ।सदगुरु ओशो के कुछ चुनिंदा प्रवचन है यहा पर आप  पुरा एल्बम 32 gb के दो मेमोरी कार्ड  में पा सकते है । जिनमे ओशो का संपूर्ण हिंदी प्रवचन 4000 घंटे का ।

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अध्यात्म उपनिषद...

अज्ञात की ओर.... 

अजहूं चेत गंवार....  

अमी जरत बीगसत कंवल...

अमृत की दशा....

अमृत वर्षा....

अनंत की पुकार... 

अनहद में विश्राम ...

अपने माहिं टटोल... 

अथातो भक्ति जिज्ञासा....

बहुरि न ऐसा दांव ...  

बहु तेरे है घाट... 

भज गोविंदम....

भक्ति सूत्र.... 

भारत का भविष्य.... 

बिन बाती बिन तेल....  

बिन घन परत फुहार...

बिरहानी मंदिर दियाना बार...

चेती सके तो चेत ....

चित चकमक लागे नहीं....

दरिया कहे शब्द निर्वाण...

दीपक बारा नाम का....

देख कबीरा रोए.... 

धर्म और आनंद.... 

धर्म की यात्रा....

धर्म साधना के सूत्र...

ध्यान दर्शन ....

ध्यान सूत्र.. 

दीया तले अंधेरा....  

एक एक कदम.... 

एक नया द्वार.... 

एक ओंकार सतनाम....

एस धम्मो सनंतनो....

गीता दर्शन 01-02...

गीता दर्शन 03...

गीता दर्शन 04...

गीता दर्शन 05....

गीता दर्शन 06...

गीता दर्शन 07...

गीता दर्शन 08...

गीता दर्शन 09...

गीता दर्शन 10...

गीता दर्शन 11... 

गीता दर्शन 12....

गीता दर्शन 13...

गीता दर्शन 14...

गीता दर्शन 15.... 

गीता दर्शन 16... 

गीता दर्शन 17... 

गीता दर्शन 18...

गुरु प्रताप साध की संगति...

गहरे पानी पैठ...  

हंसा तो मोती चुगे .... 

जगत तरैया भोर की... 

जस पनिहार धरे सिर गागर...

जीवन दर्शन...  

जीवन ही है प्रभु... 

जीवन की खोज.... 

जीवन क्रांति के सूत्र..

जीवन रहस्य....

जीवन संगीत... 

जरत दश हु दिस मोती...

जिन खोजा तिन पाया...

जीन सूत्र... 

जो बोले तो हरि कथा...

जो घर बारे आपना...

झुक आई बदरिया सावन की

ज्योति से ज्योति जले... 

ज्योतिष अद्वैत का विज्ञान..

ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया... 

ज्यो था त्यो ठहराया ...

का सोवे दिन रोने... 

क्या कहूं उस देश की...

काहे होत अधीर... 

कहे कबीर दीवाना...

कहे कबीर मैं पूरा पायो... 

कहे वाजिद पुकार... 

कैवल्य उपनिषद्....

कन थोड़े कंकड़ घने...

कानों सुनी झूठ सब....

करुणा और क्रांति.... 

कठोपनिषद.... 

कोपले फिर फूट आई.... 

कृष्ण स्मृति... 

क्या ईश्वर मर गया है.... 

क्या सोवे तु बावरी.... 

लगऩ मुहरत झूठ सब.... 

महावीर मेरी दृष्टि में...  

नेति नेति नीति नीति.... 

पद घुंघरू बांध..

पथ प्रेम को अटपटो...

पीवत रामरस लगी खुमारी...

पीर अमृत बंद पडी...

पीव पीव लगी प्यास...

पिया को खोजन मैं चली... 

प्रभु मंदिर के द्वार पर... 

प्रीतम छबी नेनं बरसे...

प्रेम दर्शन...

प्रेम गंगा... 

प्रेम हैं द्वार प्रभु का ....

प्रेम नदी के तीरा....

प्रेम पंथ ऐसो कठिन....

प्रेम रंग रस ओढ़े चुनरिया....

रहिमन धागा प्रेम का.... 

राम दुआरे जो मरे....

साधना पथ (अंतर्यात्रा)

सहज आशिकी नाही... 

साधना पथ (पथ की खोज) 

साधना पथ (प्रभु की पगडंडियां) 

सहज मिले अविनाशी...

सहज समाधि भली...

सहज योग.... 

साहिब मिले साहिब भावे....

साक्षी की साधना.... 

समाधि कमल.....

समाधि के द्वार पर.... 

समाधि के सप्त द्वार.... 

संभोग से समाधि की ओर...

संबोधि के क्षण... 

समुद्र समान बूंद में....

संतो मगन भयो मन मेरा... 

सपना ये संसार... 

सत्य की प्यास...

शिक्षा और धर्म.... 

शिक्षा में क्रांति.... 

शिव सूत्र.... 

शुन्य के पार.... 

शुंन्य समाधि...

सुख और शांति.... 

सुमिरन मेरा हरि करे.... 

स्वर्ण पाखी था जो कभी...

स्वयं की सत्ता.... 

सुनो भाई साधु....

तमसो मा ज्योतिर्गमय...

ताओ उपनिषद.... 

तुश्रणा गई एक बूंद से...

उडियो पंख पसार...

उपासना के क्षण...

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र..

विज्ञान धर्म और कला... 

व्यस्त जीवन में ईश्वर की खोज... 

योग नए आयाम... Etc.

Saturday, January 7, 2017

मनुष्य जब भी प्रेम करता है...

..... जिससे भी प्रेम करता है , तो वस्तुत परमात्मा की तलाश में ही करता है। तुम जब किसी स्त्री के सौंदर्य से मोहित हुए हो,तो अनजाने ही सही, उस स्त्री के चेहरे के दर्पण में तुम्हें परमात्मा की कुछ छवि दिखायी पड़ी है। तुम्हें होश हो कि न हो। तुम जब किसी पुरुष के प्रेम में पड़े हो, तो तुम्हें कुछ भनक सुनायी पड़ी है। दूर की आवाज सही, साफ साफ पकड़ में भी न आती हो, मुट्ठी भी न बँधती हो, लेकिन जब भी तुमने किसीको चाहा है तो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि तुमने परमात्मा को ही चाहा है। लेकिन तुम अपनी चाहत के रंग को समझ नहीं पाए, चाहत के ढंग को समझ नहीं पाए। चाहा कुछ, उलझ गये कहीं और।

जैसे खिड़की से किसी ने सूरज को ऊगते देखा और खिड़की के चौखटे को पकड़ कर बैठ गया, और खिड़की की पूजा करने लगा। खिड़की में कुछ बुरा भी नहीं है, सूरज को दिखाया है खिड़की ने, तो धन्यवाद दो, मगर खिड़की की पूजा करने बैठ गये! फिर सूरज का क्या होगा? खिड़की लक्ष्य बन जाती है, माध्यम होती तो ठीक थी।

ऐसे ही हमने किसी मनुष्य के चेहरे में परमात्मा की झलक पायी, किन्हीं आँखों में उसकी शराब उतरती देखी, किसी युवा देह में उसकी बिजली चमकी, उसकी बिजली कौंधी, हम देह को पकड़कर बैठ गये, हम आँख की पूजा करने लगे, हम रूप के पुजारी हो गये अgएएर हम यह भूल ही गये कि सब रूप में अरूप झलकता है, सब आकार में निराकार, सब गुणों में निर्गुण। इतनी भर याद आ जादू, तो जीवन मे वह पड़ाव आ जाता है जहाँ से नयी यात्रा शुरू होती है। वह मोड़ आ जाता है,जीवन 'नर्म का पहनावा पहन लेता है, जीवन धर्म को गीत गाने लगता है।

संसार है तो परमात्मा का ही प्रेम, लेकिन माध्यम से हो गया है। और माध्यम को हम इतने जोर से पकड़ लेते हैं कि माध्यम जिसे दिखाने के लिए है, वह चूक ही उठाता है। ऐसा समझो कि किसी से तुम्हें प्रेम हो जाए और तुम उसके वस्त्रों को ही सब कुछ समझ लो और उसकी देह की तलाश ही न करो, तो तुम्हें लोग पागल कहेंगे। संसार पागल है। तुम्हें किसी से प्रेम हो जाए और तुम उसकी देह पकड़ लो और उसकी आत्मा की तलाश ही न करो, यह भी पहली ही जैसी भ्रांति है। क्योंकि देह वस्त्र से ज्यादा नहीं है। तुम्हें किसी से प्रेम हो जाए और तुम उसकी आत्मा को ही पकड़ लो और परमात्मा तक तुम्हारे प्राण न उठें, फिर भी भूल हो गयी। खोदे चलो। खोजे चलो। हर जगह से तुम परमात्मा तक पहुँच सकते हो। क्योंकि हर जगह वही छिपा है। आवरण कितने ही हो, आवरण उघाड़े जा सकते हैं। न तो आवरणों को पकड़ना और न आवरणों से भयभीत होकर भाग जाना।

दुनिया में दो तरह के काम होते रहे हैं। कुछ लोग आवरण पकड़ लेते हैं किन्हीं ने खिड़की की पूजा शुरू कर दी है। और इनकी मूढ़ता को देखकर कुछ लोग खिड़की को छोड्कर भाग गये हैं। ऐसे भागे हैं कि खिड़की के पास नहीं आते। दोनों ने भूल कर दी है। क्योंकि सूरज खिड़की से ही देखा जा सकता है। न तो पूजनेवाला देख पाएगा और न भगोड़ा देख पाएगा।

संसार परमात्मा की खिड़की है। भोगी भी नहीं देख पाता और जिसको तुम योगी कहते हो, वह भी चूक जाता है। भोगी ने जोर से पकड़ लिया है संसार, योगी इतना घबड़ा गया है भोगी की पकड़ देखकर कि उसने पीठ कर ली और भागा जंगल की तरफ। लेकिन संसार उसका ही है। वही यहाँ तरंगित है। यह गीत उसका है। इस बाँसुरी पर उसी के स्वर उठ रहे हैं। बाँसुरी को न तो पकड़ो, न बाँसुरी से डरो, बाँसुरी से आते हुए अज्ञात स्वरों को पहचानो। फिर बाँसुरी का भी सन्मान होगा। सच्चे धार्मिक व्यक्ति के मन में संसार का अनादर नहीं होता, सम्मान होता है। क्योंकि यही तो परमात्मा से जोड्ने का उपाय है, यही तो सेतु है। सच्चा व्यक्ति संसार का भी अनुगृहीत होता है,क्योंकि इसी ने परमात्मा तक लाया। सच्चा व्यक्ति अपनी देह का भी अनुगृहीत होता है, क्योंकि यह देह वाहन है।

सच्चा व्यक्ति किसी चीज के विरोध में ही नहीं होता। सब चीजों का उपयोग कर लेता है। समझदार वही है जो जहर का अमृत की तरह उपयोग कर ले। वही कुशल है, और वही बुद्धिमान।

संतो मगन भया मन मेरा

ओशो