Monday, October 10, 2016

अभी थोड़े और भटको

🌷  अगर प्यास न हो,
धर्म की बात ही छोड़ दो।
अभी धर्म का क्षण नहीं आया।

अभी थोड़े और भटको।
अभी थोड़ा और दुख पाओ।
अभी दुख को तुम्हें मांजने दो।
अभी दुख तुम्हें और निखारेगा।
अभी जल्दी मत करो।
अभी बाजार में ही रहो।
अभी मंदिर की तरफ पीठ रखो।

क्योंकि जब तक तुम
ठीक से पीड़ा से न भर जाओ,
लाख बार मंदिर आओ,
आना न हो पाएगा।
हर बार खाली हाथ आओगे,
खाली हाथ लौट जाओगे।
मंदिर तो उसी दिन आओगे,
जिस दिन बाजार की तरफ
पीठ ही हो जाए।

तुम जान ही लो कि सब व्यर्थ है।
उस दिन तुम बाजार में
बैठे-बैठे पाओगे,
मंदिर ने तुम्हें घेर लिया।
उस दिन तुम्हें गुरु खोजने
न जाना पड़ेगा,
वह तुम्हारे द्वार पर
आकर दस्तक देगा।

अपनी प्यास को परख लो।
मगर बड़ा मजा है,
लोग प्यास का सवाल ही
नहीं उठाते; पूछते हैं,
सदगुरु की परीक्षा क्या?

तुम अपनी परीक्षा कर लो।
तुम तक तुम्हारी
परीक्षा काफी है;
उससे आगे मत जाओ।
तुम्हें प्रयोजन भी क्या है सदगुरु से?

तुम अपनी प्यास को पहचान लो।
अगर प्यास है,
तो तुम जल की खोज कर लोगे--
करनी ही पड़ेगी मरुस्थल में भी
आदमी जल खोज लेता है,
प्यास होनी चाहिए।

और प्यास न हो,
तो सरोवर के किनारे
बैठा रहता है।
जल दिखाई ही नहीं पड़ता।
जल के होने से थोड़े
ही जल दिखाई पड़ता है!
भीतर की प्यास होने से
दिखाई पड़ता है।
कभी उपवास करके बाजार गए?

उस दिन फिर कपड़े
की दूकानें नहीं दिखाई पड़तीं,
सोने चांदी की दूकानें नहीं
दिखाई पड़तीं,
सिर्फ रेस्ट्रां, होटल!
उपवास करके बाजार में जाओ,
सब तरफ से भोजन की गंध
आती मालूम पड़ती है,
जो पहले कभी नहीं
मालूम पड़ी थी।
सब तरफ भोजन ही
बनता हुआ
दिखाई पड़ता है।
वह पहले भी बन रहा था,
लेकिन तब तुम भूखे न थे।

भूखे को भोजन दिखाई पड़ता है।
प्यासे को पानी दिखाई पड़ता है।
साधक को सदगुरु दिखाई पड़ जाता है......👏

😊 _*ओशो*_  😊

🍀 *पिव पिव लागी प्यास (दादू)* 🍀

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