Sunday, September 17, 2017

मृत्यु के देवता Story

Story of the week
मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के पकड़े नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकियह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।नानक जो कह रहे हैं, वह यह कह रहे हैं कि तुम अगर अपने को बीच में लाना बंद कर दो, तो तुम्हें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दो उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। तुम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दो। वह जो भी हो, तुम्हारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता तुम मत करना।

Friday, September 1, 2017

प्रेम(Love)की स्पष्ट व्याख्या क्या है

आज मैं आप सब को प्रेम(Love)की व्याख्या करती हूँ प्रेम-नफरत ' ईर्ष्या ' द्वेष का विरोधी है और भक्ति का एक रूप है चूँकि आज प्रेम का निम्न  स्तर पर इस्तेमाल होने से उसकी सुगंध दुर्गंध मे बदल गई हैं प्रेम की ताकत उसकी कमजोरी बन गई है इसलिए अब प्रेम का जादू बेअसर हो गया है आज प्रेम प्रार्थना बनाने की बजाय वासना बन कर रह गई हैं अब प्रेम का इजहार दूषित नजरों से देखा जाने लगा है इसलिए प्रेम की तड़प अब एक दुःख बनकर रह गई जो आपके लिए महाआनंद सकती थीं-

प्रेम(Love)की स्पस्ट व्याख्या क्या है

प्रेम(Love)की अग्नि शीतल अग्नि न बनकर बल्कि नरक की आग  बन गई आज प्रेम का करिश्मा खोखला बनकर रह गया और प्रेम की नगरी पैसों का व्यापार बन गई है प्रेम की गीत मन-भंजन नहीं बना बल्कि आज ये भजन मनोरंजन के साधन बन गए है-

प्रेम का अमृत अंधश्रद्धा की मदिरा और बेहोशी का साधन बन गया जबकि प्रेम का बल जो सेवा बन सकता था आज वह निजी स्वार्थ बन गया है प्रेम(Love)की याद निराकार की ओर ले जाने की बजाय अहंकार की पुष्टि बन गई है और अब प्रेम का अनुभव पूर्णता खो चुका है-

आज प्रेम का स्वाद इंद्रियों मे फँस कर रह गया है जो है ध्यान 'ज्ञान' समझ  ' प्रेम (भक्ति) प्रार्थना और छमा नफरत 'ईर्ष्या' द्वेष से मुक्ति पाने के लिए इंसान को प्रेम, भक्ति और छमा का वरदान दिया गया है नफरत अगर रोग है तो छमा इसकी दवा है-

संतों की शिक्षा में प्रेम 'भक्त ' और छमा को हमेशा से महत्व दिया गया है प्रेम ही ईश्वर हैं और ईश्वर ही प्रेम हैं प्रेम में कोई शर्त नहीं होती हैं प्रेम में पहला भाव लेना-देना का आता है कि-मैं प्रेम लूँ जितना मिल सकता हैं उतना लूँ-रिश्ते जब शुरू होते है तब बच्चे माता पिता से कहते है ये चाहिए, वो चाहिए,बच्चे माँगते ही रहते है बच्चे केवल अपने बारे मे सोचते है वे किसी के बारे मे नही सोचते है और मां को भी ये अच्छा लगता हैं क्योंकि उस प्रेम में मोह , आसक्ति और चिपकाव हैं-

जब कोई बहुत प्रेम अभिव्यक्त करता हैं तो अक्सर उस पर कैसे प्रतिक्रिया करना या आभार व्यक्त करना आपको समझ में नहीं आता है सच्चे प्रेम को पाने की क्षमता प्रेम को देने या बाँटने से आती हैं जितना आप अधिक केंद्रित होते हे उतना अपने अनुभव के आधार पर यह समझ पाते हैं कि प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं हैं वह आपका शाश्वत आस्तित्व हैं फिर चाहे कितना भी प्रेम किसी भी रूप में अभिव्यक्त किया जाए आप अपने आप को स्वयं में पाते हैं-

प्रेम जो आकर्षण से मिलता हैं वह बस क्षणिक होता हैं क्युकी वह अनभिज्ञ या सम्मोहन की वजय से होता हैं इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता हैं और आप ऊब जाते हैं यह प्रेम धीरे धीरे कम होने लगता हैं और भय, अनिश्चिता, असुरक्षा और उदासी सा लाता हैं-

जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता हैं वह घनिष्टता लाता हैं परन्तु उसमे कोई जोश, उत्साह , या आनंद नहीं होता हैं उदहारण के लिए आप एक नवीन मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते हैं क्युकी वह आपसे परिचित हैं उपरोक्त दोनों को दिव्य प्रेम पीछे छोड़ देता हैं  यह सदाबहार नवीनतम रहता हैं आप जितना इसके निकट जाएँगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती हैं इसमें कभी भी उबासी नहीं आती हैं और यह हर किसी को उत्साहित रखता हैं-

सांसारिक प्रेम सागर के जैसा हैं परन्तु सागर की भी सतह होती हैं दिव्य प्रेम आकाश के जैसा हैं जिसकी कोई सीमा नहीं हैं अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते हैं फिर जैसे समय गुजरता हैं, यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता हैं जब वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं जिसमे ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वह प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता हैं वह हमारी स्वयं की चेतना हैं  आप इस वर्तमान शरीर, नाम, स्वरूप और संबंधो से सीमित नहीं रहते हैं-

जब प्रेम को चोट लगती हैं तो वह क्रोध बन जाता हैं जब वह विक्षोभ होता हैं तो वह ईर्ष्या बन जाता हैं,जब उसका प्रवाह होता हैं तो वह करुणा हैं और जब वह प्रज्वलित होता हैं तो वह परमान्द बन जाता हैं प्यार या प्रेम एक अहसास है तथा प्यार अनेक भावनाओं का और रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है-

प्रेम किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कह सकते हैं तभी तो कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती हैं-

रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम-

वैसे आजकल तो प्यार को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमानी अधिस्वर के साथ तोला जाता है, प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तोला जाता हैं आम तौर पर प्यार एक एहसास है जो एक इन्सान दूसरे इन्सान के प्रति महसूस करता है पुराने जमाने में लोग गुप्त रूप से प्यार करते थे और गंधर्व विवाह भी करते थे(गंधर्व विवाह यानी कि दो प्राणियों के अलावा कोई नहीं जाने)

जैसे फुलो की शुरुआत कली से होती हैं जिन्दगी की शुरुआत प्यार से होती हैं और प्यार की शुरुआत अपनों से होती हैं और प्रेम का मतलब वह.भावना जो आपको आप के घर से शुरुआत करनी होती हैं अपनी मां, बहन, भाई, पिता, अपनी दिनचर्या अगर आप ने अपने इन सभी का सम्मान करना नहीं सीखा है तो फिर आप संसार में किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते है-प्रेम माँगता हैं और आपको देना है  इसलिए देना सीखें तभी तो आपको भी मिलेगा ये "वास्तविक प्रेम"
                     
इसलिए स्बार्थ और प्यार मे उतना ही अन्तर है जितना "काँच और कंचन"

प्रस्तुति-

निर्मला मिश्रा